झूसी का सफर - मेरी कहानी Part-1

जब "अरे, कोई पुलिया है ?" की आवाज, सर चढ़ कर बोलने लगे ,
समझ जाना, टेम्पो झूसी पहुंच चुकी है
रास्ते में काली माँ का मंदिर आया और फिर आगे पुलिस थाने से बकैतबाज़ों की आवाजे हलकी हलकी कानो पर आने शुरू होती है, फिर पेट्रोल-पंप तक पहुंचते ही, अनायास निगाहें कल्लन-चाय की तरफ घूम ही गई, उसके समीप ही प्रसिद्ध देशी-बुद्धिविकास-केंद्र दिखा, बाहर अंडे-चखने की व्यवस्था से अलौकिक माहौल बन रहा था
क्रमानुसार, पाल समोसा भी पलक झपकाते आगे आया, टेम्पो से बाहर देना बैंक और अनवर मार्किट की एकाध सवारियां उतरी, सामने ननका के स्वादिस्ट छोले और मठरी देख मुँह में पानी आना लाज़मी था, खैर अब टेम्पो रुकी नहीं, गोविन्द बल्लभ पंत संस्थान भी राह में दाहिने हाथ दिखा.. यहाँ एम बी ए की पढाई करने वाले बच्चो की चहल पहल जारी था ...
इनको देख याद आया ससुरा हमारा कैट का एग्जाम नज़दीक है और तैयारी के नाम पर नील बटे सन्नाटा है, आँखें दुःख से पनियाँ ही रही थी, तभी टैम्पो पाल चौराहा और चश्मा घर से आगे अब 'पावर-हाउस, पावर-हाउस' की आवाज पे रुक गयी जहाँ लगभग आधे लोग उतर लिए,
सवारियों में कोई एक नवयुवती ने 'हम तो इतना ही देते हैं' कह कर शायद कुछ एक रूपए कम दिए, खीज कर टैम्पो चालक ने कहाँ इसे भी रख लेव मैडम, खैर तब तक वो मोहतरमा जा चुकी थी और टैम्पो वाले ने असीम संयम का परिचय देते हुवे, 'पहचान लेव छोटुवा, अइसन को अब से नै बईठाइयो' का ज्ञान चेप दिया  

(...आगे जारी)