झूसी जिंदाबाद- एपिसोड-2
जब मैंने उसे छिपकली कहा तो उसने मुझे गुस्से से ऐसे घूरा कि अगर भारत मे एक कत्ल करना माफ होता तो वो मुझे मार देती। वही दूसरी तरफ उसकी दोनों दबंग सहेलियाँ मुझे देख के हँस रही थी, उनकी हँसी से इतना तो मुझे जरूर समझ मे आ गया कि आज घर पर ये दोनों इसकी खूब खिचाई करने वाली हैं, और वो मुझे रात भर गालियाँ देने वाली है।
वैसे गालियों से तो मुझे मेरे दोस्तों ने भी न्यायनगर, अक्षय-वाटिका तक जाते-जाते पूरे रास्ते भर नवाजा। सागर ने ओरहन देना शुरू किया, 'ससूर के रहा न जा रहा था तुमसे बिना मुंह खोले?' विक्की ने भी प्रवचन सुनाया, 'बेटा मुंह खोले वो तो ठीक पर इलाहाबादी अल्हड़पन तो तुम्हारा जाना नही है, पूरे बैल बुद्धि हो ससूरे तुम, अबे चश्मा और टोपी तक तो ठीक था पर ये छिपकली का सोच के बोल दिये बे?'
हम शांति से उन दोनों को सुन रहे थे, 'राहुल महाशय , अब मुंह नहीं खोलोगे? बोलोगे भी कुछ या बस यूं ही?' अब हमने जवाब दिया, 'अरे यार! कुछ समझ मे नही आया बस उसे देखते ही रह गए, जानते हो विक्की उसकी शक्ल से ज्यादा तो हमे उसका बचपना भा गया यार, बिलकुल बच्चों कि तरह पैर पटकती है यार, जैसे किसी बच्चे को बिस्कुट न मिले तो पैर पटक के रोने लगता है उसे भी फुलकी के लिए पैर पटकते, मुंह सिकोड़ते हुवे देखा तो लगा कि अब न रो दे ये, एक बार तो सोचा गुप्ता जी से कह दूँ, भाई पहले मैडम को दे दो'। विक्की बौखलाते हुवे बोले, 'ससूर के जैसे पैर पटक रही थी ना वैसे ही तुमको भी पटकेगी, देखे नहीं कैसे बौराई थी जब छिपकली कहे हो, ना जाने इंग्लिश मे क्या-क्या गरिया दी, उ तो सुने ना होगे तुम, देखे लो फिर न कहना कि हम कुछ बोले नही'।
हमसे भी अब बरदास न हुआ और झल्ला के बोले, 'जो हुआ सो हुआ, बस इतना जान लो ससूर कि भौजाई तुम्हारी वही छिपकली बनेंगी'। सागर बोले, 'का पता पहले से ही किसी भैया की बन गई हो और हंसने लगा'। हमने कहा, 'भाई की खुशी बर्दाश्त न होगी तुमसे पता था हमे'।
विक्की बोले, 'अबे मान लो कोई हुआ तो'। हम कहे, 'अरे! क्यो मान ले बे? तुम ससूर के मोराल डाउन मत करो हमारा और हाँ कल से रोज पावर-हाउस तक घूमने चलना है, का पता किस्मत सही रहे तो दिख जाएगी'।
सागर जी बोले, 'हाँ गुरु कल से तुम्हारे लिए पावर हाउस तक की सैर शुरू, बस किसी तरह नाम और क्लास पता चल जाये तो बाकी का काम तो तुम्हारी भौजाई से करवा लेंगे'
हमने कहा, 'सीखो विक्की, इसे कहते हैं मित्रता, अबसे बेस्ट फ्रेंड वाले निबंध मे हम तुम्हारा नाम नहीं सिर्फ सागर की ही नाम लिखेंगे'। विक्की कहे, 'हाँ तो ठीक है कल से इसी के साथ जाना, हम नहीं चलेंगे'। हम हँसते हुवे बोले, 'अबे मज़ाक कर रहे हैं समझे', खैर अब हम तीनों का घर आ गया था, हम तीनों अपने-अपने घर को चल दिये। आज खाना खाने के बाद मै अपने कमरे मे आया सोचा कुछ पढ़ लूँ पर दिमाग मे तो वो छिपकली ही थी, मैंने भी कंबल ओढ़कर सोने मे ही भलाई समझी।
आज रात नींद कहाँ आनी थी, बस उसकी ही प्यारी सी सूरत सामने आ जा रही थी। इठलाते हुवे 'ऊ ऊ कितनी ठंडी है' कहते हुवे दोनों हाथो की हथेली को रगड़ती हुई तो कभी अपनी छिपकली प्रिंटेड टोपी को खिचते हुई मानो वो सिर्फ अपने कान ही नही पूरा मुँह ढकना चाहती हो उससे। मुझे तो ऐसा लग रहा था की वो बिलकुल मेरे सामने खड़ी हो और अपने टोपी से अपना मुँह ढकना चाह रही हो और मै भी प्यार से उठता हूँ और उसे बड़ी वाली मंकी कैप पहना देता हूँ, इस मंकी कैप पर भी सामने की तरफ कुछ लकीरों की कोई डिज़ाइन बनी होती है, थोड़ा और ध्यान से देखने पर छिपकली की प्रिंटिंग दिखने लगती है, बस उसी के बारे मे सोचते-सोचते न जाने कब नींद आ जाती है।
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(कहानी पसंद आए तो कमेंट करे, कोई सुझाव हो तो बताए)
जब मैंने उसे छिपकली कहा तो उसने मुझे गुस्से से ऐसे घूरा कि अगर भारत मे एक कत्ल करना माफ होता तो वो मुझे मार देती। वही दूसरी तरफ उसकी दोनों दबंग सहेलियाँ मुझे देख के हँस रही थी, उनकी हँसी से इतना तो मुझे जरूर समझ मे आ गया कि आज घर पर ये दोनों इसकी खूब खिचाई करने वाली हैं, और वो मुझे रात भर गालियाँ देने वाली है।
वैसे गालियों से तो मुझे मेरे दोस्तों ने भी न्यायनगर, अक्षय-वाटिका तक जाते-जाते पूरे रास्ते भर नवाजा। सागर ने ओरहन देना शुरू किया, 'ससूर के रहा न जा रहा था तुमसे बिना मुंह खोले?' विक्की ने भी प्रवचन सुनाया, 'बेटा मुंह खोले वो तो ठीक पर इलाहाबादी अल्हड़पन तो तुम्हारा जाना नही है, पूरे बैल बुद्धि हो ससूरे तुम, अबे चश्मा और टोपी तक तो ठीक था पर ये छिपकली का सोच के बोल दिये बे?'
हम शांति से उन दोनों को सुन रहे थे, 'राहुल महाशय , अब मुंह नहीं खोलोगे? बोलोगे भी कुछ या बस यूं ही?' अब हमने जवाब दिया, 'अरे यार! कुछ समझ मे नही आया बस उसे देखते ही रह गए, जानते हो विक्की उसकी शक्ल से ज्यादा तो हमे उसका बचपना भा गया यार, बिलकुल बच्चों कि तरह पैर पटकती है यार, जैसे किसी बच्चे को बिस्कुट न मिले तो पैर पटक के रोने लगता है उसे भी फुलकी के लिए पैर पटकते, मुंह सिकोड़ते हुवे देखा तो लगा कि अब न रो दे ये, एक बार तो सोचा गुप्ता जी से कह दूँ, भाई पहले मैडम को दे दो'। विक्की बौखलाते हुवे बोले, 'ससूर के जैसे पैर पटक रही थी ना वैसे ही तुमको भी पटकेगी, देखे नहीं कैसे बौराई थी जब छिपकली कहे हो, ना जाने इंग्लिश मे क्या-क्या गरिया दी, उ तो सुने ना होगे तुम, देखे लो फिर न कहना कि हम कुछ बोले नही'।
हमसे भी अब बरदास न हुआ और झल्ला के बोले, 'जो हुआ सो हुआ, बस इतना जान लो ससूर कि भौजाई तुम्हारी वही छिपकली बनेंगी'। सागर बोले, 'का पता पहले से ही किसी भैया की बन गई हो और हंसने लगा'। हमने कहा, 'भाई की खुशी बर्दाश्त न होगी तुमसे पता था हमे'।
विक्की बोले, 'अबे मान लो कोई हुआ तो'। हम कहे, 'अरे! क्यो मान ले बे? तुम ससूर के मोराल डाउन मत करो हमारा और हाँ कल से रोज पावर-हाउस तक घूमने चलना है, का पता किस्मत सही रहे तो दिख जाएगी'।
सागर जी बोले, 'हाँ गुरु कल से तुम्हारे लिए पावर हाउस तक की सैर शुरू, बस किसी तरह नाम और क्लास पता चल जाये तो बाकी का काम तो तुम्हारी भौजाई से करवा लेंगे'
हमने कहा, 'सीखो विक्की, इसे कहते हैं मित्रता, अबसे बेस्ट फ्रेंड वाले निबंध मे हम तुम्हारा नाम नहीं सिर्फ सागर की ही नाम लिखेंगे'। विक्की कहे, 'हाँ तो ठीक है कल से इसी के साथ जाना, हम नहीं चलेंगे'। हम हँसते हुवे बोले, 'अबे मज़ाक कर रहे हैं समझे', खैर अब हम तीनों का घर आ गया था, हम तीनों अपने-अपने घर को चल दिये। आज खाना खाने के बाद मै अपने कमरे मे आया सोचा कुछ पढ़ लूँ पर दिमाग मे तो वो छिपकली ही थी, मैंने भी कंबल ओढ़कर सोने मे ही भलाई समझी।
आज रात नींद कहाँ आनी थी, बस उसकी ही प्यारी सी सूरत सामने आ जा रही थी। इठलाते हुवे 'ऊ ऊ कितनी ठंडी है' कहते हुवे दोनों हाथो की हथेली को रगड़ती हुई तो कभी अपनी छिपकली प्रिंटेड टोपी को खिचते हुई मानो वो सिर्फ अपने कान ही नही पूरा मुँह ढकना चाहती हो उससे। मुझे तो ऐसा लग रहा था की वो बिलकुल मेरे सामने खड़ी हो और अपने टोपी से अपना मुँह ढकना चाह रही हो और मै भी प्यार से उठता हूँ और उसे बड़ी वाली मंकी कैप पहना देता हूँ, इस मंकी कैप पर भी सामने की तरफ कुछ लकीरों की कोई डिज़ाइन बनी होती है, थोड़ा और ध्यान से देखने पर छिपकली की प्रिंटिंग दिखने लगती है, बस उसी के बारे मे सोचते-सोचते न जाने कब नींद आ जाती है।
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