छिपकली, हाँ जी हाँ छिपकली। बेहद अजीब सा नाम है न ? पर मेरे लिए तो वो हमेशा छिपकली ही बनी रहेगी।
उसका नाम नही जानता था मै, पहली बार झूसी लाल-चौक पर उसको देखा था। ठंड वाला शाम का मौसम था और वो अपनी दो दबंग सहेलियों संग गुप्ता-चाट के सामने मोमोज चेपने मे लगी थी और हम अपने प्रिय मित्रों सागर और विक्की के साथ गुप्ता-चाट के यहाँ फुलकी गपगपा रहे थे।
झूसी मे गुप्ता-चाट की फुलकी हमारी पसंदीदा है क्योकि उनके बड़े-बड़े फुलको मे स्वाद तो होता ही है और वो गरमागरम भी होती हैं, किसी और के यहाँ ये बात नही। खैर फुलकी के बाद हम तीनों ने अब एक प्लेट दही-बड़ा ले लिया था, एक प्लेट मे तीन चम्मच के साथ हम तीनों लगे हुए थे। ये होती है असली दोस्तो वाली शेयरिंग, जो की झूसी के लड़को मे आसानी से देखी जा सकती है।
वैसे तो हमारा पूरा ध्यान दही-बड़े पर ही था क्योकि हमे पता था की जरा सा भी ध्यान भटका तो ये कमीने उतने मे सारा निपटा देंगे पर तभी सामने मोमोज की दुकान से एक प्यारी सी लगभग चिल्लाती हुई आवाज आई, 'ओह, सिट यार! कितना गरम है यार उफ्फ'। मैंने उधर देखा तो एक लड़की पैर पीटते हुवे मुंह से गरम हवा निकलते हुवे हाथो से पंखा कर रही थी, उसकी दोस्त पीठ को सहलाते हुवे, 'यार तुझे ध्यान से धीर-धीरे खाना चाहिए था, तू हमेशा जल्दबाज़ी करती है', इतना कह कर सहेली ने पानी का ग्लास उसकी तरफ बढ़ाया। उसने एक घूट मे ही ग्लास भर पानी पी लिया, शायद बहुत तीखे मोमोज रहे होंगे, पर ये सब देखकर मुझे हंसी आ रही थी और मै मुस्कुरा रहा था।
संजोग से हम दोनों की नजरे टकराई और मुझे मुस्कुराता देख उसने मुझे गुस्से से ऐसे घूरा मानो मैंने उससे उष्मागतिकी का फार्मूला का पूछ लिया हो। मैंने भी धीरे से नजरे झुकाई और वापस नजरे दहि-बड़े की तरफ केन्द्रित की पर साहब यहाँ तो जरा सी सावधानी हटते ही दुर्घटना घट चुकी थी, दही-बड़े वाली प्लेट पूरी खाली हो चुकी थी। सागर ने मज़े लेते हुवे कहाँ, 'गुरु! या तो दही-बड़े खा लो, या नजरे मिला लो'।
विक्की ने भी सागर की हाँ मे हाँ मिलाते हुए बेशरमों की तरह चम्मच डस्टबिन मे रखते हुवे बोला, 'अबे वो छोड़ो, बहुत दिनों से गुप्ता जी की चाट नहीं खाई, आज भी नही खाई तो बेचारे बुरा मान जाएगे'।
वैसे लगता था आज किस्मत भी यही चाहती थी की हम चाट ही खाये, क्योकि अब मैडम मोमोज खाकर गुप्ता-चाट की दुकान पर आ गयी। उनकी दूसरी तरफ हम लोग अभी खड़े थे। मैडम ने अपनी मीठी आवाज मे आर्डर दिया ,'भैया, तीन प्लेट फुलकी'। अब तो हम भी वहाँ रुकना चाहते थे। मैंने विक्की से कहाँ, 'यार हाँ, चाट खाये तो बहुत दिन हो गए, चल खाते हैं'। अब सागर बाबू मुस्कुराते हुए बोले, 'खा तो लेंगे, पर आज का पूरा बिल तुम दोगे'। ना चाहते हुए भी मुझे हाँ कहना पड़ा।
इतना सुनते ही सागर ने झट से बोला, 'ओ भाई! तीन जगह चाट लगाना'। उधर से जवाब आया भैया, बस दीदी लोगो को फुलकी खिला दे फिर देते हैं, मैंने भी मुस्कुराते हुवे कहा, 'कोई बात नहीं भईया, अब आप हमारी बात पहले कहाँ सुनेगे'। इतना सुनते ही वो मेरी तरफ देखी मैंने भी मुस्कुरा के उसकी तरफ देखा, इस बार उसने मुझे घूरने के बजाय एक प्यारी मुस्कान के साथ देखा फिर नजरे झुका ली।
मै तो बस उसकी तरफ देखता ही रह गया। उसने सफेद और महरून रंग की मखमली टोपी लगाई थी उस पर उभरी हुई छिपकली कि आकृति बनी थी, कुछ ज्यादा तो समझ मे नहीं आया पर जो भी था वो छिपकली मुझे बहुत प्यारी लग रही थी, कलाई मे तीन-चार रंग के बैंड सरीखे कुछ बंधा हुआ था, शायद फ्रेंड्शिप बैंड हो और आंखो मे बिल्ली-कट फ्रेम वाला चश्मे लगाए एकदम मासूम और पढ़ाकू लग रही थी, हरकते भी उसकी बिलकुल बच्चो जैसी थी। अचानक से दोनों हाथों की हथेली रगड़ते हुवे 'ऊ ऊ कितनी ज्यादा ठंडी है', कह कर मुंह से भाप निकालती, तो कभी अपनी जैकेट के ज़ेबो मे दोनों हाथ डालकर उछलने की कोशिश करती हुई पैर पीटकर इठलाते हुवे कहती, 'भईया, जल्दी फुलकी खिलाइये न'
मै एक बार फिर से उसकी इन प्यारी अदाओ मे खो गया। तभी सागर ने कोहनी मारी, 'ससूर के हवशी मत बन जाओ, जरा प्यार से देखो'। मैंने कहा, 'प्यार से ही तो देख रहा हूँ, अब क्या जाकर गले लगा लूँ तभी समझोगे की प्यार से देख रहा हूँ'। अब तक शांत विक्की बोल पड़ा, 'साले इतना भी प्यार से देखने को नहीं कह रहा है, सच मे हवसी हो गए हो'। हम तीनों हंसने लगे। उधर वो लोग भी अब फुलकी का आखिरी राउंड निपटा रही थी, मैंने कहा, 'गुप्ता सेठ, अब तो हम लोगो को भी चाट खिला दीजिये', ये सुनकर उधर मैडम भी फुलकी खाते हुवे धीरे से मुस्कुरा दी, हमने उन्हे देखा तो नजरे झुका ली, शायद वो भी समझ रही थी कि हम यहाँ उन्ही के लिए रुके है, अब अगर लेट हुआ तो रुकना व्यर्थ हो जाएगा।
खैर हम लोगों को चाट मिल गयी, मैंने कहा, 'ससूर के जल्दी-जल्दी ठूसो, साथ मे ही चलना है'। विक्की ने चम्मच मुंह से निकालते हुए बोला, 'अबे छिछोरगिरी करते हुवे पीछे नहीं जाना हमे'। हम विक्की को कुछ बोलते उससे पहले ही सागर ने विक्की को एक कंटाप लगाते हुवे कहा, 'ससूर के साल भर पहले भौजाई के लिए, पावर-हाउस से लाल-चौक, लाल-चौक से छतनाग खूब करवाए हो, ज्यादा शराफतअली न बनो, तब तो ये छिछोरपंती तुम्हें प्यार कि पहली सीढ़ी नजर आती थी, नौटंकी मत कर जल्दी से खा'।
इसी दौरान अचानक कहीं से एक छोटा छिपकली का बच्चा, मैडम के पैर के पास से निकला, मैडम चिल्लाने लगी 'छिपकली-छिपकली, पैर के नीचे छिपकली,' हटो यार, हटो, मुझे छिपकली से बहुत डर लगता है', कहकर उछलने-कूदने लगी। अब तो ये देख कर हमारी हंसी रुकी ही नही, हम खिलखिला के हंसने लगे और तपाक से मुंह से निकला, 'घबड़ाइए नही, एक छिपकली दूसरी छिपकली को काटती नही'। इस पर तो सभी लोग लोग हंसने लगे। उधर मैडम गुस्से से लाल पीली होने लगी, और 'माइंड योर ओन बीजनेस' बोल के बिल पूछा। ये देख हमने और सागर ने एक ही बार मे बची हुई चाट ठूस लिया पर विक्की भाई साहब अभी भी कटोरी मे चम्मच मारने मे ही लगे थे। ये देख सागर ने विक्की से बोला, 'अबे जल्दी करो'। विक्की ने तुनक के थोड़ा तेज़, उन्हे सुनाकर कहा, 'खा लेंगे तब तो चलेंगे, इतनी जल्दी क्या है'। हमने गुप्ता जी से कहा, 'पैसे इससे ले लीजिएगा, ये आराम से आएगा, चलो बे सागर'। इतने मे विक्की, 'अबे रुको बे, हो गया' कहकर झटपट कटोरी और चम्मच डस्टबिन मे और चाट पेट मे। ये सब देखकर वो तीनों हंसने लगी, गुप्ताजी और हम लोग भी हंसने लगे, मैंने मन ही मन चौवन फुट वाले हनुमान जी को धन्यवाद दिया की चलो वो हंसी तो, यानी नाराज़ नहीं है मुझ से।
खैर आगे पैसे देकर हम लोग भी उन लोगो के साथ ही पावर-हाउस वाली रोड पर चलने लगे। काफी शांति से हम लोग चल रहे थे, न वो सब कुछ बोल रही थी, न ही हम लोग। अमृत-स्वीट-हाउस आ चुका था, मुझसे रहा न गया मैंने कहा, 'यार सागर, सोच रहे हैं कि मोमोज भी खाने चाहिए थे'। विक्की ने कहा, 'चलो तो फिर चलते हैं'। सागर ने ठोकते हुवे विक्की को कहा, 'कल के लिए भी कुछ रहने दो मालिक'।
हम सब अब पावर-हाउस पहुँचने गए थे, वो तीनों शायद टेम्पो का इंतज़ार कर रही थी, हम लोग भी साथ मे यूही खड़े हो गए। मैंने कहा, 'यार ठंड बहुत है, ये मैडम के जैसे एक टोपी ले लेना चाहिए छिपकली वाला'। ये सुनते ही सागर ने मज़ाकिया अंदाज़ मे कहा, 'हाँ ससूर के नाती, और तुम चश्मा भी ले लो अब उनके तरह और पूरा बिल्ली बन जाओ'। वो तीनो भी अब मुंह दबाकर हँस रही थी। तभी चुंगी-चुंगी करते एक अप्पे आई और वो तीनों अब चुंगी जाने वाली अप्पे मे बैठने ही वाली थी तभी पता नहीं क्या सूझा कि मैंने तेज़ से चिल्लाया, 'वैसे मखमली टोपी मे छिपकली बहुत प्यारी लगती है'। वो मेरी तरफ मुड़ी और तेज़ी से घूरा मुझे जैसे मेरी दोनों किडनी निकाल लेगी। मैंने दोनों हाथो से कान को पकड़ा और माफी मांगने का इशारा किया और वो तुनक कर मुंह दूसरी ओर घूमा लिया और हम उसे ही देखते रह गए।
खैर टेम्पो अब चल दी, उसकी दोनों सहेलिया तो हँस रही थी पीछे मुड़कर पर वो जब मुड़ी तो वही गुस्से से लाल और हम सिर झुकाये सोच रहे थे की ये क्या बोल दिया मैंने, वो मेरे बारे मे कितना गलत सोच रही होगी, बेवजह नाराज़ कर दिया उसे।
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उसका नाम नही जानता था मै, पहली बार झूसी लाल-चौक पर उसको देखा था। ठंड वाला शाम का मौसम था और वो अपनी दो दबंग सहेलियों संग गुप्ता-चाट के सामने मोमोज चेपने मे लगी थी और हम अपने प्रिय मित्रों सागर और विक्की के साथ गुप्ता-चाट के यहाँ फुलकी गपगपा रहे थे।
झूसी मे गुप्ता-चाट की फुलकी हमारी पसंदीदा है क्योकि उनके बड़े-बड़े फुलको मे स्वाद तो होता ही है और वो गरमागरम भी होती हैं, किसी और के यहाँ ये बात नही। खैर फुलकी के बाद हम तीनों ने अब एक प्लेट दही-बड़ा ले लिया था, एक प्लेट मे तीन चम्मच के साथ हम तीनों लगे हुए थे। ये होती है असली दोस्तो वाली शेयरिंग, जो की झूसी के लड़को मे आसानी से देखी जा सकती है।
वैसे तो हमारा पूरा ध्यान दही-बड़े पर ही था क्योकि हमे पता था की जरा सा भी ध्यान भटका तो ये कमीने उतने मे सारा निपटा देंगे पर तभी सामने मोमोज की दुकान से एक प्यारी सी लगभग चिल्लाती हुई आवाज आई, 'ओह, सिट यार! कितना गरम है यार उफ्फ'। मैंने उधर देखा तो एक लड़की पैर पीटते हुवे मुंह से गरम हवा निकलते हुवे हाथो से पंखा कर रही थी, उसकी दोस्त पीठ को सहलाते हुवे, 'यार तुझे ध्यान से धीर-धीरे खाना चाहिए था, तू हमेशा जल्दबाज़ी करती है', इतना कह कर सहेली ने पानी का ग्लास उसकी तरफ बढ़ाया। उसने एक घूट मे ही ग्लास भर पानी पी लिया, शायद बहुत तीखे मोमोज रहे होंगे, पर ये सब देखकर मुझे हंसी आ रही थी और मै मुस्कुरा रहा था।
संजोग से हम दोनों की नजरे टकराई और मुझे मुस्कुराता देख उसने मुझे गुस्से से ऐसे घूरा मानो मैंने उससे उष्मागतिकी का फार्मूला का पूछ लिया हो। मैंने भी धीरे से नजरे झुकाई और वापस नजरे दहि-बड़े की तरफ केन्द्रित की पर साहब यहाँ तो जरा सी सावधानी हटते ही दुर्घटना घट चुकी थी, दही-बड़े वाली प्लेट पूरी खाली हो चुकी थी। सागर ने मज़े लेते हुवे कहाँ, 'गुरु! या तो दही-बड़े खा लो, या नजरे मिला लो'।
विक्की ने भी सागर की हाँ मे हाँ मिलाते हुए बेशरमों की तरह चम्मच डस्टबिन मे रखते हुवे बोला, 'अबे वो छोड़ो, बहुत दिनों से गुप्ता जी की चाट नहीं खाई, आज भी नही खाई तो बेचारे बुरा मान जाएगे'।
वैसे लगता था आज किस्मत भी यही चाहती थी की हम चाट ही खाये, क्योकि अब मैडम मोमोज खाकर गुप्ता-चाट की दुकान पर आ गयी। उनकी दूसरी तरफ हम लोग अभी खड़े थे। मैडम ने अपनी मीठी आवाज मे आर्डर दिया ,'भैया, तीन प्लेट फुलकी'। अब तो हम भी वहाँ रुकना चाहते थे। मैंने विक्की से कहाँ, 'यार हाँ, चाट खाये तो बहुत दिन हो गए, चल खाते हैं'। अब सागर बाबू मुस्कुराते हुए बोले, 'खा तो लेंगे, पर आज का पूरा बिल तुम दोगे'। ना चाहते हुए भी मुझे हाँ कहना पड़ा।
इतना सुनते ही सागर ने झट से बोला, 'ओ भाई! तीन जगह चाट लगाना'। उधर से जवाब आया भैया, बस दीदी लोगो को फुलकी खिला दे फिर देते हैं, मैंने भी मुस्कुराते हुवे कहा, 'कोई बात नहीं भईया, अब आप हमारी बात पहले कहाँ सुनेगे'। इतना सुनते ही वो मेरी तरफ देखी मैंने भी मुस्कुरा के उसकी तरफ देखा, इस बार उसने मुझे घूरने के बजाय एक प्यारी मुस्कान के साथ देखा फिर नजरे झुका ली।
मै तो बस उसकी तरफ देखता ही रह गया। उसने सफेद और महरून रंग की मखमली टोपी लगाई थी उस पर उभरी हुई छिपकली कि आकृति बनी थी, कुछ ज्यादा तो समझ मे नहीं आया पर जो भी था वो छिपकली मुझे बहुत प्यारी लग रही थी, कलाई मे तीन-चार रंग के बैंड सरीखे कुछ बंधा हुआ था, शायद फ्रेंड्शिप बैंड हो और आंखो मे बिल्ली-कट फ्रेम वाला चश्मे लगाए एकदम मासूम और पढ़ाकू लग रही थी, हरकते भी उसकी बिलकुल बच्चो जैसी थी। अचानक से दोनों हाथों की हथेली रगड़ते हुवे 'ऊ ऊ कितनी ज्यादा ठंडी है', कह कर मुंह से भाप निकालती, तो कभी अपनी जैकेट के ज़ेबो मे दोनों हाथ डालकर उछलने की कोशिश करती हुई पैर पीटकर इठलाते हुवे कहती, 'भईया, जल्दी फुलकी खिलाइये न'
मै एक बार फिर से उसकी इन प्यारी अदाओ मे खो गया। तभी सागर ने कोहनी मारी, 'ससूर के हवशी मत बन जाओ, जरा प्यार से देखो'। मैंने कहा, 'प्यार से ही तो देख रहा हूँ, अब क्या जाकर गले लगा लूँ तभी समझोगे की प्यार से देख रहा हूँ'। अब तक शांत विक्की बोल पड़ा, 'साले इतना भी प्यार से देखने को नहीं कह रहा है, सच मे हवसी हो गए हो'। हम तीनों हंसने लगे। उधर वो लोग भी अब फुलकी का आखिरी राउंड निपटा रही थी, मैंने कहा, 'गुप्ता सेठ, अब तो हम लोगो को भी चाट खिला दीजिये', ये सुनकर उधर मैडम भी फुलकी खाते हुवे धीरे से मुस्कुरा दी, हमने उन्हे देखा तो नजरे झुका ली, शायद वो भी समझ रही थी कि हम यहाँ उन्ही के लिए रुके है, अब अगर लेट हुआ तो रुकना व्यर्थ हो जाएगा।
खैर हम लोगों को चाट मिल गयी, मैंने कहा, 'ससूर के जल्दी-जल्दी ठूसो, साथ मे ही चलना है'। विक्की ने चम्मच मुंह से निकालते हुए बोला, 'अबे छिछोरगिरी करते हुवे पीछे नहीं जाना हमे'। हम विक्की को कुछ बोलते उससे पहले ही सागर ने विक्की को एक कंटाप लगाते हुवे कहा, 'ससूर के साल भर पहले भौजाई के लिए, पावर-हाउस से लाल-चौक, लाल-चौक से छतनाग खूब करवाए हो, ज्यादा शराफतअली न बनो, तब तो ये छिछोरपंती तुम्हें प्यार कि पहली सीढ़ी नजर आती थी, नौटंकी मत कर जल्दी से खा'।
इसी दौरान अचानक कहीं से एक छोटा छिपकली का बच्चा, मैडम के पैर के पास से निकला, मैडम चिल्लाने लगी 'छिपकली-छिपकली, पैर के नीचे छिपकली,' हटो यार, हटो, मुझे छिपकली से बहुत डर लगता है', कहकर उछलने-कूदने लगी। अब तो ये देख कर हमारी हंसी रुकी ही नही, हम खिलखिला के हंसने लगे और तपाक से मुंह से निकला, 'घबड़ाइए नही, एक छिपकली दूसरी छिपकली को काटती नही'। इस पर तो सभी लोग लोग हंसने लगे। उधर मैडम गुस्से से लाल पीली होने लगी, और 'माइंड योर ओन बीजनेस' बोल के बिल पूछा। ये देख हमने और सागर ने एक ही बार मे बची हुई चाट ठूस लिया पर विक्की भाई साहब अभी भी कटोरी मे चम्मच मारने मे ही लगे थे। ये देख सागर ने विक्की से बोला, 'अबे जल्दी करो'। विक्की ने तुनक के थोड़ा तेज़, उन्हे सुनाकर कहा, 'खा लेंगे तब तो चलेंगे, इतनी जल्दी क्या है'। हमने गुप्ता जी से कहा, 'पैसे इससे ले लीजिएगा, ये आराम से आएगा, चलो बे सागर'। इतने मे विक्की, 'अबे रुको बे, हो गया' कहकर झटपट कटोरी और चम्मच डस्टबिन मे और चाट पेट मे। ये सब देखकर वो तीनों हंसने लगी, गुप्ताजी और हम लोग भी हंसने लगे, मैंने मन ही मन चौवन फुट वाले हनुमान जी को धन्यवाद दिया की चलो वो हंसी तो, यानी नाराज़ नहीं है मुझ से।
खैर आगे पैसे देकर हम लोग भी उन लोगो के साथ ही पावर-हाउस वाली रोड पर चलने लगे। काफी शांति से हम लोग चल रहे थे, न वो सब कुछ बोल रही थी, न ही हम लोग। अमृत-स्वीट-हाउस आ चुका था, मुझसे रहा न गया मैंने कहा, 'यार सागर, सोच रहे हैं कि मोमोज भी खाने चाहिए थे'। विक्की ने कहा, 'चलो तो फिर चलते हैं'। सागर ने ठोकते हुवे विक्की को कहा, 'कल के लिए भी कुछ रहने दो मालिक'।
हम सब अब पावर-हाउस पहुँचने गए थे, वो तीनों शायद टेम्पो का इंतज़ार कर रही थी, हम लोग भी साथ मे यूही खड़े हो गए। मैंने कहा, 'यार ठंड बहुत है, ये मैडम के जैसे एक टोपी ले लेना चाहिए छिपकली वाला'। ये सुनते ही सागर ने मज़ाकिया अंदाज़ मे कहा, 'हाँ ससूर के नाती, और तुम चश्मा भी ले लो अब उनके तरह और पूरा बिल्ली बन जाओ'। वो तीनो भी अब मुंह दबाकर हँस रही थी। तभी चुंगी-चुंगी करते एक अप्पे आई और वो तीनों अब चुंगी जाने वाली अप्पे मे बैठने ही वाली थी तभी पता नहीं क्या सूझा कि मैंने तेज़ से चिल्लाया, 'वैसे मखमली टोपी मे छिपकली बहुत प्यारी लगती है'। वो मेरी तरफ मुड़ी और तेज़ी से घूरा मुझे जैसे मेरी दोनों किडनी निकाल लेगी। मैंने दोनों हाथो से कान को पकड़ा और माफी मांगने का इशारा किया और वो तुनक कर मुंह दूसरी ओर घूमा लिया और हम उसे ही देखते रह गए।
खैर टेम्पो अब चल दी, उसकी दोनों सहेलिया तो हँस रही थी पीछे मुड़कर पर वो जब मुड़ी तो वही गुस्से से लाल और हम सिर झुकाये सोच रहे थे की ये क्या बोल दिया मैंने, वो मेरे बारे मे कितना गलत सोच रही होगी, बेवजह नाराज़ कर दिया उसे।
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